पुस्तकों से प्रश्न करती कह रहीं अलमारियाँ,
रुग्ण क्यों दिखने लगी हो क्या तुम्हें बीमारियाँ।
पाठकों का प्रेम क्यों घटने लगा है इन दिनों,
दोष किसका है कहो कैसे बढ़ीं दुश्वारियाँ।
रो रहीं कविता ,कहानी क्यों तुम्हारी कोख में,
फेसबुक की चाल है या वक्त की लाचारियाँ।
माँग के अनुरूप ही ढलना तुम्हें होगा सखी,
ई-किताबों में विलय की अब करो तैयारियाँ।
हम तुम्हारे बिन कबाड़ी भाव में बिकने चलीं,
लुप्त होती दिख रहीं साहित्य की किलकारियाँ।
आ गया इंस्टा तुम्हारे ज़ख्म पर मलने नमक,
और ट्विटर कर रहा है नित नई मक्कारियाँ।
कौन है इसका रचियता दोष किसके सिर मढ़ें,
पुस्तकों के साथ “हलधर” क्यों हुई अय्यारियाँ।
– जसवीर सिंह हलधर , देहरादून