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पन्थ प्रणय का ही गहूँ हर बार – अनुराधा पाण्डेय

प्रिय! प्रणय में सुधा मिल न पाई तो क्या?

शर्त ये तो न थी, मत गरल‌ दीजिए।

हो मिलन यदि कठिन तो विरह ही सही,

तय हुआ था हृदय हारने के समय।

आयु भर भी मिले शूल की यदि चुभन,

मैं उसे मान लूंगी प्रणय की विजय।

प्राण तत्पर रहा साध लूंगी सभी,

किन्तु पूछूं न मैं पथ सरल दीजिए।

शर्त ये तो न थी मत गरल‌ दीजिए।

शर्त ये तो नहीं—

रूक्षता ही सही,सुर सुनूं तो कभी

गीत मधुमास के हों न थी कामना ।

चाहती मैं रही हूं यही पर सतत,

आप मेरी समझ लें पवित भावना ।

मात्र उत्सव नहीं प्रेम संसार में…

दीजिए पीर की ही ग़ज़ल दीजिए।

शर्त ये तो न थी मत गरल‌ दीजिए।

शर्त ये तो नहीं–

प्रज्ञ इतना न मैं,जो कहूं सत्य हो,

किन्तु मानूं न जग की सभी रीति को ।

नाम संबंध पर वार सकती न मैं

प्राण सर्वस्व पावन अमर प्रीत को।

एक सीमा रहे जागतिक बंध पर…

मैं न कहती नियम सब बदल‌ दीजिए।

प्रिय! प्रणय में सुधा मिल न पाई तो क्या ,

शर्त ये तो न थी मत गरल‌ दीजिए।

शर्त ये तो नहीं–

-अनुराधा पांडेय, द्वारिका, दिल्ली

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