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भेदभाव लागे दुखदाई – अनिरुद्ध कुमार

अइसन हाल पहिले ना रहे,

जातपात लागे सुखदाई।

ईद बकरीद छठ दीवाली,

प्रेमभाव से सबे मनाईं।

तजिया या नवमी के झंडा

मिलजुल के साथे लहराईं।

काजाने के नजर लगइलस,

भेदभाव लागे दुखदाई।

 

बाबा दुअरा बइठल ताकीं,

हाफीजी खोजस घर आईं।

दुआ सलाम प्रणामापाती,

कुशलछेम बइठी फुरमाई।

भेदभाव तनिका ना झलके,

बीड़ी बांटस संंग सलाई।

काजाने के नजर लगइलस,

भेदभाव लागे दुखदाई।

 

आजादी के कथा कहानी,

हाफीजी बोलस समझाईं।

पाकिट में पाचक के झोरी,

दाँत चियरले हाँथ बढ़ाईं।

पाचक जनि कहीं अमृत जानी,

पाचक पाते मन मुस्काई।

काजाने के नजर लगइलस,

भेदभाव लागे दुखदाई।

 

झाड़फूंक बैदकी दवाई,

बर-बेमारी दउड़ बताईं।

हाफीजी संंग घरे अइहें,

दुखसुख कहिहें बुढ़िया माई।

जेंगा कहस वइसे करे सब,

हाफीजी के बड़ी बड़ाई,

काजाने के नजर लगइलस,

भेदभाव लागे दुखदाई।

 

हाफीजी के भरल रजाई,

आजो ओढ़े बुढ़िया माई।

सारा जाड़ा सुख से काटे,

हाफीजी के रोज दुहाई।

हाफीजी परान से प्यारा,

केहू नइखे अइसन भाई।

काजाने के नजर लगइलस,

भेदभाव लागे दुखदाई।

 

कहाँ गइल ऊँ भाईचारा,

कइसे बोलीं का समझाईं।

व्याकुल मन में पीर उठतबा,

सारा रिश्ता हवा हवाई।

नफरत के ई कइसन आँधी,

लागे सब कुछ दी धनकाई।

काजाने के नजर लगइलस,

भेदभाव लागे दुखदाई।

– अनिरुद्ध कुमार सिंह, धनबाद, झारखंड

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