आज भी भ्रमण कर रही है नारी
युगों पुरानी धुरी पर
द्रौपदी की भाँति
अपनी इज़्ज़त को बचाती
अपना आँचल संभालती
अपना हक़ माँगती…
प्रत्येक युग में अबला नारी
किसी ना किसी रूप में
जलती प्रतिशोध की अग्न में
आँचल को आँसूओं से भिगोती
अन्याय सहकर चुप्पी साध लेती
दुर्योधन के अत्याचारों को सहती
रूढ़ियों का जामा पहन
ठगी जाती,छली जाती
अपने अधिकारों से वंचित रहती
ढूँढती…कोई ‘कृष्ण’ लाज बचाने को
मगर ;
कोई नहीं लड़ता
जंग उसके अधिकारों के लिए
युधिष्ठर ,अर्जुन, भीम ,नकुल ,सहदेव की तरह
तभी तो ;
आज भी ज़िंदा हैं कई दुर्योधन,
कई दुशासन वस्त्र हरण के लिए…
हाँ; सच में औरत है शीलवती,रूपवती
मगर,युगों से
समय करता रहा परिहास
नहीं बदला इतिहास
उसकी भोगी हुई पीड़ा से उपजता जीवन
उसके व्यक्तित्व पर लिखी जातीं
लम्बी-लम्बी कविताएं
होते सेमिनार नारी-शोषण,स्त्री-प्रताड़ना,
महिला-अत्याचार पर
लेख लिखे जाते
मगर व्यर्थ जाते…
हाँ; आज भी,
औरत के मन में
चल रहा है घुटन, निराशा,कुण्ठा
के प्रति आत्म संघर्ष,
अपने अस्तित्व के लिए,
चींख,आँसू,यातना के लिए,
आत्म सम्मान के लिए…
हाँ; आज भी,
औरत के हृदय से
उठता है विद्रोह का स्वर
प्रतिकार की ज्वाला
और अंतर्मन के धरातल पर
होता रहता है महाभारत !
– डॉ. जसप्रीत कौर फ़लक,
लुधियाना, पंजाब