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पत्रकारिता के शलाका पुरुष काशीनाथ चतुर्वेदी – राकेश अचल

neerajtimes.com – पत्रकारिता में मप्र के शलाका पुरुष और मेरे पहले गुरू आदरणीय काशीनाथ चतुर्वेदी अगर आज होते तो 102 वर्ष के होते।आज से आठ वर्ष पूर्व उन्होंने इस संसार से विदा ली थी।

चौबे जी ने  कभी भी अपने जीवन को बोझ नहीं समझा ,तब भी जबकि वे जीवन के अंतिम दिनों में चलने-फिरने से लाचार हो गए थे । आदरणीय काशी नाथ जी ने 1980 में मुझे अनमने ढंग से अपना छात्र स्वीकार किया था। वे समाजवादी विचारधारा के पत्रकार थे।ब्राम्हण होने की वजह से उन्हें ग्वालियर रियासत में सरकारी नौकरी नहीं मिली। तत्कालीन सिंधिया रियासत में ब्राम्हणों के लिए सरकारी नौकरी प्रतिबंधित थी सिंधिया  सरकार मराठों,मराठी ब्राम्हणों ,मुस्लिमों और कश्मीरियों को सरकारी नौकरी में रखना पसंद करते थे ,सो चौबे जी उत्तरप्रदेश चले गए,। उन्होंने हाईस्कूल राजस्थान से किया था ।उनके अधिकाँश रिश्तेदार कलकत्ता और मुंबई में थे। चौबे जी को भी वहीं जाना था किन्तु प्रारब्ध उन्हें यूपी ले गया। कानपुर के एक दैनिक में उन्हें नौकरी मिल गयी ।ये आजादी के पहले की बात थी ।

कानपुर  से मध्यभारत के  प्रख्यात लेखक और समाजवादी चिंतक जगन्नाथ प्रसाद मिलिंद ने चौबे जी को  अपने अर्ध साप्ताहिक “जीवन” के लिए ग्वालियर बुला लिया।चौबे जी ने ग्वालियर में हमारी आवाज,नवप्रभात ,आचरण में काम किया।वे  दैनिक भास्कर के ग्वालियर  संस्करण के पहले सम्पादक  भी बने ।दैनिक भास्कर  से लेकर चंबल वाणी तक के अपने सफर में अपनी विचारधारा से कभी कोई समझौता नहीं किया ।स्वभाव के संकोची चौबे जी अपनी कलम से राजनेताओं को जख्मी करने में माहिर थे और इसीलिए अक्सर उनकी नौकरी आती-जाती रहती थी ।

आजीवन समाजवाद और गांधीवाद को जीने वाले काशीनाथ जी सचमुच काशीनाथ थे,भोलेभाले लेकिन पूरे अख्खड़ भी ,रूठ जाएँ तो मनाना कठिन हो जाये और मान जाएँ तो हलकी सी मुस्कान से ही मान जाएं। मैं जब उनसे मिला तब पत्रकारिता में अंग्रेजी का बोलबाला था,सभी समाचार एजेंसियां अंग्रेजी की थीं,खबरों का अनुवाद कराने के लिए एजी आफिस से और हाईकोर्ट से वकील अंशकालिक अनुवादक के रूप में आते थे । मुझे बड़ी कोफ़्त होती अपने अल्प आंग्ल ज्ञान पर, लेकिन चौबे जी से छिपकर मैंने छोटी-छोटी खबरों का अनुवाद शुरू किया। आरम्भ में चौबे जी मेरे अनुवाद रद्दी की टोकरी में डाल देते किंतु बाद में उन्होंने फिलर के रूप में मेरे अनुवाद इस्तेमाल करना शुरू कर दिए। बाद में मैं उन्हीं की देखरेख में दक्ष अनुवादक बन गया।

मेरे ऊपर चौबे जी की छाप वेशभूषा के साथ ही आचरण पर भी पड़ी खादी,कमीज,धोती सब उन्हीं की देन है।अक्खड़ता भी शायद उन्हीं से हस्तांतरित हुई ।मैं उनके साथ दैनिक आचरण में अनेक किश्तों में वर्षों काम करता रहा।हमने अंतिम रूप से दैनिक निरंजन में काम किया था ।इस अखबार के तत्कालीन प्रबंधन ने कतिपय कारणों से मेरा वेतन रोक दिया ।चौबे जी को पता चला तो वे बिना किसी से कहे इस्तीफा देकर चले आये और फिर कभी वापस नहीं गए ।चौबे जी ने मुझे आजीवन अखण्ड स्नेह दिया ।मैं उन दिनों युवा था,उनके कहने पर ही मैंने पहली बार किसी कॉकटेल पार्टी में हिस्सा लिया ।वे अनेक यात्राओं में मेरे रूम पार्टनर बने तब वे सोने से पहले मुझसे दिन भर का काम लिखने को कहते ।

चौबे जी ने यूएनआईऔरआकाशवाणी के लिए भी दशकों तक काम किया।अपना एक पाक्षिक अखबार भी निकाला,लेकिन अंतिम दिनों में उसे बंद कर दिया ।उन्होंने अपने समाज का इतिहास भी लिखा ,लेकिन तमाम आग्रह के बावजूद अपने अनुभव नहीं लिखे ,यदि वे ऐसा करते तो पत्रकारिता का कल्याण ही होता।उनकी अंग्रेजी और हिंदी दोनों पर गहरी पकड़ थी ।अकड़ भी ऐसी की बड़े से बड़े नेता उन्हें झुका नहीं पाये।कांग्रेस के नेता श्री भगवान सिंह से उनकी आत्मीयता जरूर अपवाद थी बाकी वे अजातशत्रु थे ।नेताओं से उन्होंने आजीवन एक सम्मानजनक दूरी बनाए रखी।अस्वस्थता के बावजूद वे मेरी पहली पुस्तक” ख़बरों का खुलासा” के विमोचन में मुझे आशीर्वाद देने आये थे। जब उनकी कमर में फ्रेक्चर हुआ उस समय भी वे अपना पूरा समय स्वाध्याय पर खर्च करते रहे। निधन के एक दिन पहले ही उनके बेटे अश्विनी से मेरी बात हुई थी,उस समय भी वे गम्भीर रूप से बीमार थे ।

मैं पूरी विनम्रता से कहता हूँ कि यदि चौबे जी मुझे न मिले होते तो शायद मैं पत्रकारिता में अपनी यात्रा को कामयाब न बना पाता।नयी पीढ़ी से उनका परिचय नहीं रहा,लेकिन वे मध्यप्रदेश की पत्रकारिता के इतिहास में हमेशा जगमगाते रहेंगे।चौबे जी को मैं अपनी विनम्र श्रृद्धांजलि अर्पित करता हूँ।(विभूति फीचर्स)

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