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वृद्धा आश्रम – जया भराडे बडोदकर

neerajtimes.com – उठते ही लता ने सबसे पहले अपने लिए एक कप चाय बनाई और फिर बालकनी में बैठे बैठे सुबह सुबह की ठंडी हवा में लम्हा-लम्हा  चाय की तलब के साथ ही सुनहरी यादों में खोती गई। बचपन से ही उसे जल्दी उठने की आदत थी। और फिर बचपन की सहेली शारदा के साथ लगभग रोज ही मंदिर तक सैर कर ना बडे खुशनवाज पल थे, साथ साथ घूमते हुए न जाने कितनी अजीब सी मस्ती भरी बातें हुआ करतीं थीं।

दोनों की दोस्ती स्कूल से कॉलेज  तक पहुँचते-पहुँचते  गहरी होती गईं। घर से बाहर तक की लगभग सभी बातें आपस में शेअर  करती थी। एक दिन जब लता को उसके पिता के तबादले की वजह से शारदा से अलग होना पड़ा था। लगता था आना जाना लगा रहेगा कभी न कभी मिलते रहेंगे। पर ऐसा नहीं हो पाया, थोडे़ दिन तक खोज-खबर मिलती रही फिर लता की शादी भी हो गई। और न जाने कब वो दोनो अपनी अपनी दुनिया में व्यस्त हो गई। घर परिवार की जिम्मेदारी ने संग सहेली दोस्ती सब कुछ भुला दिया था। जब कल लता के चाचाजी का फोन आया कि उन्हें  गाँव जाते समय ट्रेन में शारदा मिली थी उसने लता के बारे में पूछा कि वो कैसी है किधर है और फिर उसने अपने बारे में भी बताया कि वह भी रमेश के साथ शादी करके बहुत खुश थी दो बच्चे थे दोनों ही अमेरिका में बस गयें थे। उन लोगों को अपने माता-पिता के लिए जरा भी वक्त नही था। इसलिए शारदा और उसके पति ने वृद्धा आश्रम में अपना आसरा बना लिया था और बुढ़ापे में अपने आप को सुरक्षित कर लिया था। दोनों में से कोई एक भी गुजर जाता तो अकेले जीवन बिताना मुश्किल हो जाता उनकी सारी जमीन जायदाद भी उनहोंने ट्रस्ट को दान करने का निश्चय कर लिया था। पर शारदा ने लता को अपना फोन नंबर नही दिया था। सोच सोच के लता हैरान  हो रही थी कि वो काश एक बार शारदा से जरूर मिल पाती तो उसके भी अकेलेपन को भी दूर कर लेती और फिर दोनों अपना जीवन सहज सरलता से बिता देती। कयोकि लता भी अब पिछले पाँच सालों से बिलकुल अकेली ही हो गई थी। और  वह खुद वृद्धा आश्रम की सेवा में बीजी हो गई थी। वो अकेले होकर भी किसी का सहारा बनकर बहुत खुश थी। – जया भराडे बडोदकर, ठाने, मुम्बई, महाराष्ट्र

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