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बच्चे मन के सच्चे – सुनील गुप्ता

(1)” बच्चे “, बच्चे होते धुन के पक्के

और चलें कहते मन की बातें

झूठ कभी नहीं बोला करते !

और करते दिल से दिल की बातें….,

बच्चे होते मन के सच्चे  !!

(2)” मन “, मन के होते सच्चे बच्चे

और कोमल होती भावनाएं

कभी किसी का दिल ना दुःखाएं !

और चलें सदा यहां मुस्कुराएं….,

बच्चे होते मन के सच्चे  !!

(3)” के “, केवल सुनते अपने मन की

और किसी बात पे ध्यान ना दें

पर, वे जो यहां देखा करते  !

बस, सीख उसी पे अमल करें….,

बच्चे होते मन के सच्चे  !!

(4)” सच्चे “, सच्चे बच्चे सभी को भाएं

और दिल में सीधे उतर हैं आएं

ये होते हैं घर की फूलवारी !

और चलें जीवन को सदा महकाएं….,

बच्चे होते मन के सच्चे  !!

(5)  बच्चे मन के होते सच्चे

और होते हैं ईश्वर का रुप

इनसे कुछ ना यहां छिपाएं !

और चलें देखते प्रभु स्वरूप….,

बच्चे होते मन के सच्चे  !!

(6) होते बच्चे जैसे कच्ची माटी

चाहें जैसा इन्हें स्वरुप दें

इन्हें हम जैसा यहां पालें पोसें !

ये वैसा ही लिए आकार चलें….,

बच्चे होते मन के सच्चे  !!

(7) आओ बच्चों संग बच्चे बन जाएं

और चलें जीवन को यहां खिलाएं

छोड़ सभी चिंताएं यहां पर  !

हर पल आनंद खुशियाँ लुटाएं….,

बच्चे होते मन के सच्चे  !!

सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान

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