बुराई की चली साँसें , सदा दम पर अच्छाई के,
जहाँ देखो खड़ी दिखती , अच्छाई संग बुराई के ।
अच्छाई ने बुराई की, ख़िलाफत खुलके की होती,
बुराई के टिके दिखते , जगत में हाथ दुहाई के ।
न देती गर हवा पानी , ये कायरता अच्छाई की,
कभी की तोड़ देती दम , थी क्या हस्ती बुराई की ।
– “तेजस्विनी”कौशिक, दिल्ली