मनोरंजन

दोहे – डॉ. सत्यवान सौरभ

मंच हुए साहित्य के, गठजोड़ी सरकार।

सभी बाँटकर ले रहे, पुरस्कार हर बार।।

 

कौन पूछता योग्यता, तिकड़म है आधार।

कौवे मोती चुन रहे, हंस हुये बेकार।।

 

कदम-कदम पर हैं खड़े, लपलप करे सियार।

जाये तो जाये कहाँ, हर बेटी लाचार।।

 

बची कहाँ है आजकल, लाज-धर्म की डोर।

पल-पल लुटती बेटियां, कैसा कलयुग घोर।।

 

राम राज के नाम पर, कैसे हुए सुधार।

घर-घर दुःशासन खड़े, रावण है हर द्वार।।

 

वक्त बदलता दे रहा, कैसे- कैसे घाव।

माली बाग़ उजाड़ते, मांझी खोये नाव।।

 

घर-घर में रावण हुए, चौराहे पर कंस।

बहू-बेटियां झेलती, नित शैतानी दंश।।

 

वही खड़ी है द्रौपदी, और बढ़ी है पीर।

दरबारी सब मूक है, कौन बचाये चीर।।

 

गूंगे थे, अंधे बने, सुनती नहीं पुकार।

धृतराष्ट्रों के सामने, गई व्यवस्था हार।।

 

अभिजातों के हो जहाँ, लिखे सभी अध्याय।

बोलो सौऱभ है कहाँ, वह सामाजिक न्याय।।

– डॉ. सत्यवान सौरभ  333, परी वाटिका, कौशल्या भवन,

बड़वा (सिवानी) भिवानी, हरियाणा – 127045,

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