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तेरे सपने, मेरे सपने – सुनील गुप्ता

तेरे सपने, मेरे सपने

दोनों हैं जब एक जैसे  !

तो, क्यों ना चलें हम मिलके…..,

थामें हाथों में हाथ पकड़े  !!1!!

 

खिल आएगी ये दुनिया

जब होंगे पूरे यहां सपने  !

और महकेगी मन बगिया….,

बांटते खुशियाँ अपनों में !!2!!

 

भूलाकर रंजों गम सभी

चलें महकाए मन आँगन  !

करलें काम मिलके अभी…..,

फिर आएगा ना शुभ दिन !!3!!

 

चलें खिलाते ये दुनिया

ख़ूब लुटाते मधु मकरंद  !

फैलाएं चहुँओर खुशियाँ……,

नित बढ़ाएं ये प्रेम संबंध  !!4!!

 

है जिंदगी बड़ी छोटी

कल का अता पता नहीं  !

आज अभी में हम जीलें…..,

होगा आगे सब कुछ सही !!5!!

सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान

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