बनो क्यों चाँद रजनी के उगो बन सूर्य से भू पर ।
मिली क्या फूल की कीमत रहे हैं कीमती पत्थर ।
कभी सौंदर्य को तोलो नहीं बल के तराजू में ,
बली का दास है यह तो रहा बलवान का अनुचर ।
जहां में जो लड़े अब तक बचाने लाज मांटी की ,
झुकाता शीश उनके सामने तारों भरा अम्बर ।
कभी नदिया के जल सा साफ क्या तालाब का पानी ,
भले ही फूल पंकज के बने हों दास या रहबर ।
कभी सर को झुकाये आपने देखा हिमालय क्या ,
बचाता फूल घाटी के हजारों आंधियां सहकर ।
भले शृंगार गीतों में सभी सुर ताल अच्छे हों ,
तराना बन सकेगें क्या बताओ युद्ध में वो स्वर ।
भले शृंगार राजा है रसों का मानते हम सब ,
परंतू ओज का अपना अलग किरदार है ” हलधर “।
– जसवीर सिंह हलधर , देहरादून