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मेरी कलम से – अनुराधा पाण्डेय

कटि भार धारि किशोरि सरि पर नीर घट में भर रही।

उर दाह थाह अथाह पाकर कन्त पथ भी गह रही।

शुभ अंग अंग उमंग भर हिय, भूत सुधि में बह रही ।

गिरि शैल दीर्घ विछोह अतिशय, प्रेम हवि बन दह रही।।

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श्यामली के श्याम वर्ण, कुंडल बिराजै कर्ण,

तन पर पीत वस्त्र लगे द्युतिमान हैं।

छिटके घटा से केस, नासिका सँवारे बेस,

मद से छकी की देखो! मीठी मुसकान है।

कज्जल नयन कारे, अधर भी अरुणारे,

योगी यति मुनि सब, करते बखान हैं।

चंचल चपल नार, यौवन युगल भार,

खुद में निमग्न देखो, खुद का न भान है।

– अनुराधा पाण्डेय, द्वारिका दिल्ली

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