जमाना लगे आजकल की नया है,
कहाँ खैरमकदम सभी बेजुबां है।
भरोसा नहीं है किसी का किसी पे,
परेशान दौड़े लगे सब ख़फा है।
भुला प्यार सारें करें है तिजारत,
जहां देखिये फायदा कायदा है।
यही जिंदगी रातदिन का तमाशा,
करें गुफ्तगू क्या भला या बुरा है।
नजर को चुराये सरेराह चलते,
दया ना हया ना जिगर में खुदा है।
मुहब्बत इबादत लगे है दिखावा,
नहीं आज दिलसे जुबां पे दुआ है।
दिखे जब नजारा कराहे सदा’अनि’,
रहें जग सलामत यही इल्तिजा है।
– अनिरुद्ध कुमार सिंह
धनबाद, झारखंड