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मायावती का सन्यास या नयी राजनीतिक चाल ? – राकेश अचल

neerajtimes.com – भारतीय दलित राजनीति में चार दशक पूरे कर चुकी बसपा सुप्रीमो मायावती ने अपनी प्राइवेट लिमिटेड कम्पनी बहुजन समाज पार्टी का उत्तराधिकार अपने भतीजे आकाश आनंद को सौंपकर ये संकेत दे दिया है कि वे अब राजनीति से ‘ अघा ‘ गयीं हैं। सक्रिय राजनीति में मायावती की प्रासंगिकता पिछले कुछ वर्षों से लगातार कम हो रही थी ऐसे में पार्टी को नया नेतृत्व देना उनकी विवशता भी थी और आवश्यकता भी। अब सवाल ये है कि बहन मायावती राजनीति में खुलकर खेलेंगीं या फिर सचमुच वानप्रस्थ ले लेंगी?राजनीतिक विश्लेषक इसे मायावती की सोची समझी राजनीतिक चाल मान रहे हैं।

मायावती औपचारिक रूप से राजनीति में बसपा संस्थापक कांशीराम की शिष्या के रूप में 1977  में ही सक्रिय हो गयीं थीं ,लेकिन 1984  में बसपा के गठन के बाद उन्होंने लोकसभा का पहला चुनाव 1989  में लड़ा और जीता था। उनका राजनीतिक सफर बिजनौर संसदीय क्षेत्र से प्रारंभ हुआ था। 67  साल की  मायावती ने भारतीय राजनीति में अपनी चौंकाने वाली उपस्थिति दर्ज कराई थी। वे 1994  में लोकसभा के बजाय राज्यसभा की सदस्य बनीं और 1995  में उन्होंने देश के सबसे बड़े प्रदेश उत्तरप्रदेश में कांग्रेस और भाजपा जैसी राष्ट्रीय पार्टियों की मौजूदगी के बावजूद प्रदेश की ही नहीं अपितु देश की पहली दलित मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली।

देश में दलितों की खैरख्वाह पहले कांग्रेस को माना जाता था ,लेकिन मायावती ने ये भरम तोडा । उत्तरप्रदेश की तत्कालीन राजनीति में वे केवल चार महीने में ही अपदस्थ कर दी गयीं। तब मायावती अनथक  योद्धा बनकर मैदान में डटी रहीं। उन्होंने दो साल बाद फिर मुख्यमंत्री का पद हासिल किया। वे एक के बाद एक चार बार मुख्यमंत्री बनीं। उन्होंने राजनीति की तमाम स्थापित मर्यादाओं को तोड़ा लेकिन सत्ता के सूत्र अपने हाथ में रखे। वे कभी समाजवादियों के  साथ रहीं तो कभी भाजपा के साथ और कभी अकेली। 06  मार्च 2012  तक उन्हें सत्ता सुख मिला ,लेकिन उसके बाद से वे राजनीति के अरण्य में भटक गयीं और अब तक सत्ता के नजदीक नहीं आ पायीं।

राजनीति में एक नए तरह का सामंतवाद मायावती की देन है । पहली बार किसी दल के प्रमुख के रूप में सुप्रीमो शब्द उन्हीं के नाम के साथ चस्पा हुआ। मायावती ने पहली बार खुले आम अपनी पार्टी के लोकसभा, राज्यसभा और विधानसभा के टिकिट कीमत वसूलकर चुनाव लड़ने वालों को दिए। उन्होंने बाकायदा अपने वोट बैंक की कीमत उन लोगों से वसूल की जो कांग्रेस,भाजपा या समाजवादी पार्टी में उपेक्षित किये जा चुके थे। जिन्हें कोई टिकिट न देता हो उन्हें बसपा का टिकिट दिया गया। इसका बसपा को लाभ भी मिला और हानि भी हुई । बसपा का समर्थक मतदाता बाजार की चीज बन गया। धीरे-धीरे बसपा का जनाधार खिसकने लगा और स्थिति शून्य की ओर बढ़ने लगी , लेकिन  मायावती ने अपना स्वभाव और कार्यशैली नहीं बदली।

बहन मायावती के नाम से प्रसिद्ध मायावती की माया क्षीण हुई पिछले एक दशक के भाजपा राज में। उनकी खामोशी ने उन्हें भाजपा की ‘ बी ‘ टीम के रूप में बदनाम कर दिया था।  मायावती की मुठ्ठी खुली तो खुलती ही चली गयी ।  उनका अखंड दलित वोटबैंक बिखरने लगा और अनेक राजनीतिक दलों में बंट गया। बावजूद इसके उनके नेतृत्व को किसी ने खुलकर चुनौती नहीं दी। आज की स्थिति में मायावती के पास पार्टी का नेतृत्व छोड़ने के अलावा कोई विकल्प बचा नहीं था। सो उन्होंने अपने भतीजे आकाश आनंद को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया।

आकाश आनंद मायावती के छोटे भाई आनंद कुमार के बेटे हैं। शुरू में आकाश आनंद को बसपा में चार राज्यों की जिम्मेदारी सौंपी गयी थी। पिछले 6 सालों में आकाश की सक्रियता पार्टी में बढ़ती रही है।  मायावती ने आकाश आनंद को पार्टी कोऑर्डिनेटर जैसा अहम पद दिया था। आकाश ने दूसरे राज्यों में संगठन की बैठक की और सभाएं की। आकाश पढ़े-लिखे युवा है।  मायावती ने उन्हें लंदन से एमबीए कराया ताकि वे पार्टी प्रबंधन में कामयाब हो सकें। मायावती अपने उत्तराधिकारी को कांग्रेस के राहुल गांधी की तरह सड़क मार्ग से सक्रिय करना चाहती है।  आगामी लोकसभा चुनाव से पहले बसपा  ने अपनी पदयात्रा आयोजित न करने की रणनीति में बदलाव किया है।आकाश आनंद ने 14 दिवसीय ‘सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय’ संकल्प यात्रा शुरू की, जो अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले बसपा की रणनीति में एक महत्वपूर्ण बड़े बदलाव का संकेत है।

अब देखना ये है कि  मायावती आकाश  के जरिये बसपा का लुप्त हुआ आकाश एक बार फिर हासिल कर पाती हैं या नहीं ? इस समय दलित वोटर नेतृत्वविहीन है ।  न कांग्रेस के पास कोई जमीनी नेता है और न भाजपा के पास। समाजवादी पार्टी के पास तो दलित नेता खोजे से नहीं मिलने वाले। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को दलित नेता के रूप में हाल के पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में एक तरह से ख़ारिज कर दिया गया है। ऐसे में आकाश आनंद के लिए संभावनाएं तो अनंत हैं ,लेकिन इन संभावनाओं का दोहन तभी सम्भव है जब आकाश अपनी बुआ की छत्रछाया से बाहर निकलकर अपनी अलग पहचान बनाएं और बसपा को तनिक लोकतांत्रिक राजनीतिक दल बनाये ।  बसपा को प्राइवेट लिमिटेड की तरह चलना उनकी गलती होगी।(विनायक फीचर्स)

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