मिरा दिल जहाँ ने दुखाया बहुत है
खुशी छीन कर के रुलाया बहुत है।
दुआ मांग हारें मिला ना सहारा,
फ़कत दर्द दे आजमाया बहुत है।
तड़पते सदा आज हो बेसहारा
कहें क्या जमाना सताया बहुत है।
यहाँ कौन सुनता लगे आजमाने,
हमेशा तमाशा दिखाया बहुत है।
किसे पास अपने बुलायें बताओ,
सभी गैर लगते नचाया बहुत है।
समय खेल-खेले हँसी आ रही है,
जिगर पतझड़ों ने दुखाया बहुत है।
उमर पाँव खींचे जिये जा रहा’अनि’,
समझ जिंदगी से निभाया बहुत है।
– अनिरुद्ध कुमार सिंह, धनबाद, झारखंड