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ग़ज़ल (हिंदी) – जसवीर सिंह हलधर

मछेरे वही हैं वही जाल भाई,

वही मछलियाँ हैं वही ताल भाई !

 

वही जाम ठर्रा मिला रोज मर्रा ,

पुराने तरीके वही हाल भाई !

 

लगी होड सी है चुराने की पैसा ,

सभी राजनेता दिखें लाल भाई !

 

बिके सौ टमाटर गयी प्याज ऊपर,

गरीबों की  देखो छिली खाल भाई ।

 

अमीरी गरीबी में खाई बढ़ी है ,

चखी साल भर से नहीं दाल भाई !

 

अभी नोट बंदी का देखा तमासा,

नहीं खोज पाये दबा माल भाई !

 

चुनावी तमाशे नए रोज़ वादे ,

वही झूँठ सारे वही चाल भाई !

 

सभी हाथ खाली न रोटी न थाली ,

धरा पूत रोये नहीं ढाल भाई !

 

गधे खा रहे माल देखो तमाशा ,

छिले अश्व के खुर बिना नाल भाई ।

 

बटी कौम भोली कमीनी सियासत ,

बजाओ न “हलधर “अभी गाल भाई !

– जसवीर सिंह हलधर, देहरादून

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