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मन-मंदिर ~ कविता बिष्ट

है मन मंदिर शोभित मोहक, पावन जीवन को रचसारा।

मोहक मंजुल सा अनुबंधन, कोमल भाव जगा अतिप्यारा।।

ढोल मृदंग बजावत जोगिन, साज सुदीप सजावट सारा।

है मन भावन सूरत मोहक, आँगन-आँगन सावन धारा।।

जीवन जीकर देख अभी हिय, गीत सुवासित हो नभ तारा।

पीकर आज सुधा रस झंकृत, हो मन मंदिर रोशन न्यारा।

मोहकता निज कर्म रहे नित, जीवन पावन सा कर प्यारा।

सावन बीत रहा मन का अब, रोष गया जबसे तम हारा।।

हे जन नायक ईश सुभाषित, नाथ सुशोभित एक हमारा।

साज सजी प्रभु के चरणों रख,जीवन शोभित एक सहारा।।

नाम सुनाम मिले जन को यह, कौशल गौरव रोज निहारा।

देख अलौकिक काज सुजान सु,मंगल साज सँवारा।।

~ कविता बिष्ट ‘नेह’, देहरादून , उत्तराखंड

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