मनोरंजन

गीत – मधु शुक्ला

सुना है आज  जैसा  कल  नहीं  महँगा  जमाना था,

न कोठी, कार, होटल का किसी को बिल चुकाना था।

 

अधिकतर आय सबकी पूर्व में सीमित रहा करती।

गुजारा प्रेम से होता न कोई चीज थी घटती।

सभी के होंठ पर संतोष का प्यारा तराना था – – – – -।

न कोठी, कार, होटल का- – – –

 

नहीं तब पाठशालाएं बहुत मँहगीं हुआ करतीं।

मगर वे ध्यान बच्चों का बहुत ही ध्यान से रखतीं।

वहाँ पर आपसी व्यवहार का मिलता खजाना था – – -।

न कोठी, कार, होटल का- – – –

 

लगा है ढ़ेर अब तो डिग्रियों का हर किसी घर में।

रहे बैचैन फिर भी मन नहीं है नौकरी कर में।

नहीं दुर्लभ रहा पहले कभी हँसना हँसाना था – – – – -।

न कोठी, कार, होटल का- – – –

— मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश

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