(1) ” स् “, स्वयं में रहता हूं बना सदा
हूं अपनी मर्ज़ी का मालिक !
औरों के कहने पर चलता नहीं….,
सुनता हूं अपने दिल की अधिक !!
(2) ” व “, वर्तमान में सदा ही रहता हूं
नहीं कल पर टालता हूं काम !
आज अभी तत्क्षण में जीता……,
करता नहीं आलस्य विश्राम !!
(3) ” भा “, भाग्य विधाता अपने स्वयं का
है मुझको ईश्वर में पूरी आस !
चलूं करता यहां पुरुषार्थ सदा……,
और रखता स्वयं पर हूं पूरा विश्वास !!
(4) ” व “, वरदहस्त है मुझ पर अपने गुरु का
और मात पिता सभी अग्रजनों का !
रहता हूं उनकी छत्रछाया में…..,
और यशगान करूं सदैव ईश्वर का !!
(5) ” स्वभाव “, स्वभाव में जो रहता यहां पर
उस पर नहीं पड़े औरों का प्रभाव !
वह रहता सदा सत चित आनंद में…,
और रखे मन में है सम्यक भाव !!
(6) ” स्वभाव “, स्वभाव कभी यहां त्यागें नहीं
और औरों से बचकर ही चलें !
होता जिनका स्वभाव यहांपर अच्छा..,
उन पर भला कोई क्या प्रभाव डाले !!
(7) बनें रहें सदा ‘स्व’, में अपने
और औरों की तनिक परवाह ना करें !
करते रहें सदा सत्कर्म यहां पर….,
और स्वयं पर यहां पूरा विश्वास धरें !!
-सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान