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गीत – अनुराधा पाण्डेय

तारकों की यूथिका पर नाम सन्दर्भित किया था,

तब लगा प्रिय ! प्रीत में हम वस्तुत: पागल हुए थे।

 

वे दिवस भी क्या दिवस थे,जब मिले स्वर्णाभ पर थे ।

तब हमारे यों लगा ज्यों व्योम के उस पार घर थे ।

जड़ प्रकृति को भी तुम्हारे नेह ने दीक्षित किया था ।

रात रानी-सी निशा तब और दिन संदल हुए थे ।

 

जब तुम्हारी स्निग्ध सुधियां एक क्षण को भी घिरी थी ।

तब तुम्हारी देह सौरभ वन विजन में आ गिरी थी ।

तीर प्रेमिल जब नयन ने तान कर लक्षित किया था ।

प्रेम में आकुल हृदय द्वय हाय ! तब घायल हुए थे ।

– अनुराधा पाण्डेय, द्वारिका, दिल्ली

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