मनोरंजन

इंतज़ार मांगते हैं – ज्योत्सना जोशी

अल्फ़ाज़ आज बाग़ी हो गये हैं यूं,

रस्में रिवायत मुझसे एतमाद जताते हैं।

 

एक वक्त के बाद हर बात जाहिर है,

ख़ामोश इल्तिज़ा इख़्तियार रखते हैं।

 

रश्क करने वालों से जाकर कह दो,

राह-ए-उल्फत में एहतराम चाहते हैं।

 

क्या बीत रहा है अंदर किसे बताएं,

ख़ामोशी का शोर इख़्लास संवारें हैं।

 

मेरे शहर में तेरी आमद की खुशबू,

तयशुदा मुलाकातें बेआवाज महकते हैं।

 

हौसला भी रखा सब्र भी संभाला,

कुछ रिश्ते सदाक़त इंतज़ार मांगते हैं।

– ज्योत्स्ना जोशी, देहरादून , उत्तराखंड

Related posts

हिंदी ग़ज़ल – जसवीर सिंह हलधर

newsadmin

पिया से मिलकर आए नैन- अनुराधा पाण्डेय

newsadmin

दर्द – सुनीता मिश्रा

newsadmin

Leave a Comment