कान्हा, ओ कान्हा
तेरे रुप हज़ार !
जब-जब निहारूं,
पाऊं तेरे दर्शन…….,
दिखे भाव अपार !!1!!
कान्हा, ओ कान्हा
तेरे रुप हज़ार !
मन मंदिर में,
तुझको बैठाकर…..,
देखूं अपलक बारम्बार !!2!!
कान्हा, ओ कान्हा
तेरे रुप हज़ार !
बन लड्डू गोपाल,
जब घर आए……,
आयीं खुशियाँ बहार !!3!!
कान्हा, ओ कान्हा
तेरे रुप हज़ार !
नित्य सजा के ,
गाऊं और रिझाऊं….,
पाऊं अप्रतिम श्रृंगार !!4!!
कान्हा, ओ कान्हा
तेरे रुप हज़ार !
बसाए नयनों में ,
चलूं दिव्य दर्शन…..,
बहे भावों की धार !!5!!
-सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान