ऐसा चढ़ा है अब तो कुछ प्यार आशिकी का,
अहसास अब तो होता,कुछ आपकी कमी का।
आहो ने आग डाली,मुफलिस के आज घर पर,
लपटो ने फूँक डाला ईमान जिंदगी का।
आ अब गिरा दे हम भी दीवार नफरतो की,
अब चैन से जिये हम,हो दौर भी खुशी का।
आ तोड़ हम भी डाले मजहब की ये दिवारे,
आओ बहा दे गंगा,बस प्यार जिंदगी का।
आ खत्म आज करदे तासीर खुदकुशी की,
लहरायेगा तिरंगा यारा नयी सदी का।
– रीता गुलाटी ऋतंभरा, चंडीगढ़