दिल अकेला मगर लाख अरमान हैं,
इसलिए आदमी बस परेशान हैं।
रोज मिलना मिलाना कहां अब रहा,
एक दूजे के गमो से सब अंजान हैं।
अब घरों में बसी है यूं खामोशियां ,
शान शौकत का ज्यों कोई सामान हैं।
इश्क ने ख्वाब उनके दिखाये मुझे,
राज ए इश्क़ से जान अंजान हैं।
आग में सिर्फ मेरा मकां ही बचा,
कुछ दुआओं का”झरना” वरदान हैं।
– झरना माथुर, देहरादून , उत्तराखंड