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मेरी कलम से – अनुराधा पाण्डेय

धेनु दुग्ध के समान, वलयित परिधान,

खंजन नयन लखि, राग रतिमान है।

सुघर सलोनी गोरी , उपमा लगै है थोड़ी,

कोटि स्वर्ग अप्सरा भी, धूरि के समान हैं।

 

गन्धलेप अंग राजै, नासिका बेसरि साजै,

चन्दन सुवास डारि, लगै इत्रदान है ।

क्षीण कटि काम्य रति, उमगे मदन मति,

लखि-लखि चपला कै, काम मूर्तमान है ।

– अनुराधा पाण्डेय, द्वारिका दिल्ली

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