मेरी आँख के जिसने सपने चुराए,
कहाँ हैं लुटेरा कोई तो बताए।
महल वो जो ख़्वाबों के हमने बनाए,
कोई तो बताए वो किसने गिराए।
सभी के हैं सीनों में दिल पत्थरों के
हम उनसे ही बैठे हैं अब चोट खाए।
है इंसां अकेला तो क्यूँ डर रहा वो,
अकेला ही आया अकेला ही जाए।
कि जिस याद ने रात भर है जगाया,
है चाहत वही आके लोरी सुनाए।
वही फूल कुछ और सुंदर लगे हैं,
कि जो ओस की बूँद में हैं नहाए।
– डॉ० भावना कुँअर, सिडनी, ऑस्ट्रेलिया
संपादक-ऑस्ट्रेलियांचल पत्रिका