गांधी जी का नाम ओढ़ना ,जिनका कारोबार रहा है ।
कलम उठी कविता लिखने को ,कवि उनको ललकार रहा है ।।
अहंकार में झूल रही है ,पी पी खून देश का खादी ।
ओसामा को जी जी कहते, मामा है इनका बगदादी ।
मणिपुर पूरा लाल हुआ रे ,शोणित के छूटे फब्बारे ,
आतंकों का ओढ दुशाला ,दानव पैर पसार रहा है ।
कलम उठी कविता लिखने को ,कवि उनको ललकार रहा है ।।1
गंगा सिसक सिसक रोती है ,यमुना जी मैला ढोती हैं ।
जागो जागो देश वासियों ,नदियां सब आपा खोती हैं ।
खाद यूरिया को जो खाए ,भारत मां को मरा बताए,
संसद के संवाद देख कर ,संविधान धिक्कार रहा है ।
कलम उठी कविता लिखने को ,कवि उनको ललकार रहा है ।।2
अगर आज हम संभल न पाए ,देश हमारा बट जाएगा ।
भाई के हाथों भाई का ,गला देश में कट जाएगा ।
लाल रंग के वस्त्र पहनकर ,डायन धूम रही बन ठन कर ,
एक पड़ौसी विषधर फिर से ,सरहद पर फुंकार रहा है ।
कलम उठी कविता लिखने को,कवि उनको ललकार रहा है ।।3
चीन हमारा जानी दुश्मन , समझो उसको कभी न भाई ।
कीमत बड़ी चुकानी होगी , गलती यदि हमने दुहराई ।
कुछ माओ को ख़ास बताते ,और मार्क्स की कथा सुनाते ।
अपनो के हाथों ही “हलधर “,भारत घर में हार रहा है ।
कलम उठी कविता लिखने को ,कवि उनको ललकार रहा है ।।4
– जसवीर सिंह हलधर , देहरादून