ये बदली भी जाने क्या सितम ढ़ायेगी,
हसरतें इसकी है बरस के दिखायेगी।
आसमान में यूँ घटा बन के छायी है,
जैसे अपने प्रीतम से मिलने आयी है।
झूम झूम के ये घूमड़ के बरसी है,
ये अपने साजन को देख के हर्षी है।
कुछ तो अरमान है जिसके लिए तरसी है,
कभी थमी है कभी गरज के बरसी है।
उसकी चाल में अजब सी ही खुमारी है,
जो उसने प्रेम सुधा बनके उतारी है।
ये बदली भी जाने क्या सितम ढ़ायेगी,
हसरतें इसकी है बरस के दिखायेगी।
– झरना माथुर, देहरादून, उत्तराखंड