मनोरंजन

तिरंगा (लखु कथा) – प्रतिभा जैन

neerajtimes.com- उठो रजवी मुझे देर हो रही है।  कल मेरी फाइनल परेड है। आज सारी तैयारी करनी है। क्या राज इतनी सुबह सुबह उठा रहे हो। सो जाओ ना थोड़ी देर? अरे उठो रजवी ये देखो मैं चाय बना लाया पी कर बताओं कैसी बनी चाय का कप रजवी के हाथ में देते हुए राज बोला। अरे बाबा आपके हाथ की चाय कभी ख़राब बनती है? बस बस ज्यादा तारीफ़ के पुल न बांधो जल्दी उठो और तैयार हो कर आज मेरे साथ चलो गार्डन तुम्हें अपनी परेड दिखाता हूं। कल तुम्हें साथ नहीं ले जा पाऊंगा। राज एक आर्मी ऑफिसर है। क्या यार मैं तो कल चलूंगी आपको फुल ड्रेस में परेड करते हुए देखना है। नहीं मैं नही साथ ले जा पाऊंगा इसलिए आज का बोल रहा हूं जल्दी चलो। नही मै तो कल ही चलूंगी।  रजवी जिदद पकड़ क़र बैठ गई। अच्छा बाबा अब गुस्सा शांत कारो और चलो आज और कल दोनो दिन साथ चलना राज लाल साड़ी देते हुए कहता है। जैसे ही परेड के बैंड बजने की आवाज़ टीवी पर रजवी ने सुनी उसके हाथ से चाय का कप नीचे गिर गया और सपना टूट गया आंखो में आँसूं लिए धीरे से टीवी बंद कर दी क्योंकि आज वो ही 15 तारीख है आज जब राज तिरंगा ओढ़ कर घर आया था। सच में आज उसकी फाइनल परेड थी रोते हुए रजवी ने कहा। – प्रतिभा जैन, टीकमगढ़,  मध्य प्रदेश

Related posts

अब लौट आओ साँवरिया – किरण मिश्रा

newsadmin

जो कहते हो – अनुराधा प्रियदर्शिनी

newsadmin

तलाश – सुनील गुप्ता

newsadmin

Leave a Comment