मनोरंजन

हाथ की रेखाएं – विनोद निराश

सृष्टि में रचा-बसा प्रेम,

एक विशेष मौसम में,

जब उर अन्तस में पनपता है,

सब कुछ बदल सा जाता है।

 

हाथो की रेखाओं के मध्य,

उलझी रेखाओं के ताने-बाने में,

जब किसी रेखा में प्रेम अंगड़ाई लेता है,

तो मधुमास का उदय हो जाता है।

 

सर्वप्रथम हाथ की किसी रेखा में,

जब प्रेमाभिलाषा रेखांकित होती है,

सोच के अंतिम पड़ाव तक,

स्वयं के भीतर भी कुछ महसूस होता है।

 

ह्रदय धमनियों का बढ़ता वेग,

स्फुटित होते नन्हे प्रणय अंकुर,

अनंत अभिलाषाएं समेटे,

मन बंजारा बन भटक जाता है।

 

बिछुड़ते वक़्त बस कोई इतना कह दे,

मैं जल्द लौट आऊंगा, हमेशा के लिए थोड़े जा रहा हूँ,

देर से होने वाली मुलाक़ात में भी,

जल्दी होने वाली मुलाक़ात का अहसास हो जाता है।

 

उसके पास तो अनेको कारण थे जाने के,

मैं उसे रोकने की एक वजह भी न बता सका,

अब जब भी कभी कोई ख्याल आता है,

निराश मन उन स्मृतियों में खो जाता है।

– विनोद निराश , देहरादून

Related posts

ग़ज़ल हिंदी – जसवीर सिंह हलधर

newsadmin

पूछता चाहती हूँ – ज्योत्स्ना जोशी

newsadmin

आइये समय के साथ चलें – सुनील गुप्ता

newsadmin

Leave a Comment