घिर आयी सावन की बदरिया,
काली-काली कजरारी बदरिया।
साजन तो है परदेस में मेरे,
बिन साजन के असुवँन घेरे,
भावे ना मोहे तेरी नगरिया,
घिर आयी सावन की बदरिया।
चूड़ी खनके, गजरा महके,
हाथों की मेहंदी भी दमके,
पांव की रुठी मोरी पायलिया,
घिर आयी सावन की बदरिया।
– झरना माथुर, देहरादून, उत्तराखंड