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दुर्मिल सवैया छंद – अर्चना लाल

जब दूर गए घन बादल के, फिर धीरज क्यों मुख मोड़ रहा।

बरसे  बदरा  अब नैनन से,  हृद  को  बस मौन  मरोड़ रहा।

दिल में यदि प्रीत नहीं अपनी,अब जीवन का नहिं छोर रहा।

सब बात युगों पहले लिख दी, अब ना अपनों पर जोर रहा ।।

 

कुण्डलियाँ – अर्चना लाल

बादल बरसे नेह के , झूमे लतिका झार।

बूंदों की पाकर छुअन, खुले हृदय का द्वार।।

खुले हृदय का द्वार, सखी वो मुझे रिझाते।

हुई सुहानी शाम ,  नेह अनुपम बरसाते ।।

ठहर जरा तू मेघ, साथ मुझको भी ले चल।

मन में उठी उमंग, देख कर काले बादल।।

– अर्चना लाल, जमशेदपुर , झारखण्ड

 

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