हवाऐं चलीं हैं हमें ये बताने,
चलो प्रीति के गुनगुना लें तराने।
वो सावन की बरखा, घटाएं वो बदली,
तुम्हे छू के आई ,पवन आज पगली,
जो बारिश की बूंदों, ने पैगाम भेजा,
तुम्हे क्या पता प्रीत, पल पल सहेजा,
लगी है मुझे आज, ऋतु भी रिझाने,
चलो प्रीत के,गुनगुना लें तराने।
मुझे ढूंढती हैं निगाहें तुम्हारी,
नहीं जो दिखें तो बढ़े बेकरारी,
सुबेशाम का वो तेरा राह तकना,
बिना काम के ही गली में भटकना,
हमें याद आएं वो किस्से पुराने,
चलो प्रीत के गुनगुना लें तराने।
लगाई थी मेंहदी तुम्हे याद करके,
सजाती रही ख़ाबआंखों में भरके,
लगे गूंजने गीत शहनाइयों के,
बताने लगे हाल तनहाईयों के,
तुम्हे ढूंढने के वो कितने बहाने,
चलो प्रीत के गुनगुना लें तराने।
कभी काग कहने मुंडेरों पे आया,
कभी याद ने मुस्कुरा कर जगाया,
कभी रूठने फिर मनाने की बातें,
सलोनी सजीली, दिलों की बरातें,
बजें साज फिर से सुरीले सुहाने,
चलो प्रीत के गुनगुना लें तराने।
– सरला मिश्रा, दिल्ली