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चलें संभल कर – सुनील गुप्ता

(1)”चलें “, चलें सदा यहां संभल-संभल कर

है सफर बड़ा ही पथरीला कठोर !

आएंगे ऐसे कई मोड़ यहां पर……,

जहां लग सकती है चोट और ठोकर  !!

(2)”संभल “, संभल-संभल कर ख़ुद को संभालें

और बढ़ते रहें मंज़िल की ओर  !

ठोकर खाकर यदि गिर पड़ें….,

तो, उठकर चलें पुनः लक्ष्यों की ओर  !!

(3)”कर “, कर सकें तो इतना अवश्य करें

औरों को भी चलें देते यहां संबल   !

स्वयं को तो होगा रहना सतर्क…..,

पर चलना होगा सदा संभल-संभल  !!

(4)”चलें संभल कर “, जीवन सफ़र में

है नहीं आसान यहां पर चलना   !

आएंगे पथ में कई रोड़े व्यवधान…..,

फिर भी होगा संभलकर ही बढ़ना  !!

(5) हर ठोकर बनाए चले है मजबूत

और दे जाए जीवन को एक नयी दिशा   !

हों नहीं कभी यहां पर हताश निराश…..,

लें हर ठोकर से हम एक नई शिक्षा !!

(6) बदल दिया करती हैं ये ठोकरें

अक्सर जीवन की दशा और दिशाएं  !

हर ठोकर दे जाती है एक सीख…..,

और चली जाती हैं देकर अनुभव शिक्षाएं !!

(7)  आओ बनाएं ठोकरों को गुरु मंत्र

और भूलें नहीं उनसे मिला हर ज्ञान   !

सदा जीवन ध्येय को प्राप्त करते चलें….,

और करते रहें जीवन में नव संधान  !!

-सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान

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