मेह आयो रे, आयो रे मेह
नेह प्रेम संग भर-भर लायो !
बरस रही रिमझिम फुहारें……,
और चहुँ ओर आनंद हर्षायो !!1!!
खिल-खिल आयी सारी प्रकृति
और छम-छम झूमें मन मयूरा !
डाली-डाली है लहरायी……..,
और कोयल कूके, गाए पपीहरा !!2!!
गरज बरस रहीं काली घटाएं
सब ओर है आनंद छितरायो !
उड़-उड़ जा रही मकरंदी हवाएं…..,
जीवन में रस भर-भर आयो !!3!!
मधुर स्वर लहरी के संग-संग
नाचे तन मन और ये जीवन !
फूल खिलें उपवन कानन में….,
चहुँ ओर सजे हैं रंग मनभावन !!4!!
मेह बरसते रहे चले यहां पर
और जीवन में खुशहाली छायी !
ओढ़ चली धानी चुनरिया…..,
और वसुंधरा खिल-खिल है आयी !!5!!
उत्सव आनंद का है ये पर्व
आओ तन मन इसमें भिगोलें !
आज मनालें खुशियाँ और हर्ष…..,
मेह बारिश में स्वयं को रचालें !!6!!
-सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान