मनोरंजन

हासिल – ज्योत्स्ना जोशी

कुछ ख़्वाब अपने थे कुछ ख्वाहिशें उधार लेकर,

कहां ख़बर थी वो मनमर्जियों की रज़ा हो गये।

 

तन्हाइयों में निबाह करने का सलीका सीख लिया,

पानी में अक्स देख खामोशी की जुबां हो गये।

 

बिखरी है रोशनाई घर के किसी अंधेरे कोने से,

तलाश ही लेती है अज़मत लब्ज़ फ़ज़ा हो गये।

 

महज़ सांस लेने को ज़िंदा रहना कैसे कह दूं,

भटकती राहों का अज़्म रहबर ख़ुदा हो गये।

 

मिलना भी नहीं ना ही उसकी महफ़िल में जाना है,

ठहरे हुए चंद तसव्वुर की आमद पर फ़ना हो गये।

 

लाज़िम है ज़िंदगी की तपती धूप से सामना होना

तमाम रिश्तों में रिसकर जो हासिल हैं  दवा हो गये।

– ज्योत्स्ना जोशी , चमोली , उत्तरकाशी, उत्तराखंड

Related posts

पंडित जवाहरलाल नेहरू की पुण्यतिथि पर अर्पित की श्रद्धांजलि

newsadmin

ग़ज़ल – विनोद निराश

newsadmin

ग़ज़ल – रीता गुलाटी

newsadmin

Leave a Comment