मनोरंजन

निष्ठुर – अनुराधा पाण्डेय

निष्ठुर!!

चाहते थे रोक लें पर,

हो गये प्रिय ! दृग पनीले ।

पग तुम्हारे इस निलय से,

जब गमन को थे समुत्सुक ।

यह प्रलय तब आन गुजरे,

मन हमारा था न इच्छुक ।

चाहता था यह अभागा….

साथ कुछ क्षण और जी ले ।

चाहते थे रोक लें पर

हो गये प्रिय ! दृग पनीले ।

चाहता है कौन बोलो !

घाव को सेना हृदय में ?

कौन होगा जो न चाहे,

चांदनी बरसे निलय में ?

इसलिए यह क्लांत चित भी,

था विकल कुछ रश्मि पी ले ।

चाहते थे रोक लें पर

हो गये प्रिय ! दृग पनीले ।

– अनुराधा पाण्डेय, द्वारिका, दिल्ली

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