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ग़ज़ल हिंदी – जसवीर सिंह हलधर

पक्षियों को पालना तो गर्म ये तारें हटा दो ।

भाई चारा साधना तो मज़हबी खारें हटा दो ।।

 

भूख से लड़ना है तो कर युद्ध भ्रष्टाचारियों से ।

जो विदेशी हाथ में पहले वो तलवारें हटा दो।।

 

विश्व भर में देख आया एक जैसा आदमी है ।

शांति पथ जाना अगर तो नफरती धारें हटा दो ।।

 

हड्डियां ही हड्डियां उस महल के नीचे बिछी हैं ।

जागने वाली हैं अब वो जल्द मीनारें हटा दो ।।

 

झूंठ सच में फासला अब एक गज का भी नहीं है ।

बैल गाड़ी के लिए अब राह से कारें हटा दो ।।

 

और ज्यादा मत कुरेदो राख में अंगार रहते ।

जल न जाएं मूँछ, दाड़ी पाग, दस्तारें हटा दो ।।

 

देश किसके बाप का है प्रश्न मुँह खोले खड़ा है ।

आब में तेजाब वाली अब ये बौछारें हटा दो ।।

 

एक मौका दे रही है कौम फिर सरकार को अब ।

नागरिक कानून में बाधक वो दीवारें हटा दो ।।

 

नाव में सूराख “हलधर” ये तुझे किसने कहा है ।

छोड़ दो दरियाव में कुछ रोज पतवारें हटा दो ।।

– जसवीर सिंह हलधर, देहरादून

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