भूलकर अवसाद के मत पास जाया कीजिए,
बाँट कर खुशियाँ जगत को मुस्कराया कीजिए।
जब कृपा हो ईश की मिलता मनुज जीवन तभी,
भेंट यह अनमोल पाकर सिर झुकाया कीजिए।
है पता सम्मान, रिश्ते, धन नहीं कुछ भी अमर,
जोड़ कर आशीष दौलत चैन पाया कीजिए।
ढूँढ़िए मत दीन सेवा के लिए पद, कुर्सियाँ ,
भूख अपनी कुछ घटा उनको खिलाया कीजिए।
दोष गिन प्रिय और के क्यों कर रहे बर्बाद वक्त,
आप निज व्यक्तित्व में नित गुण बढ़ाया कीजिए।
— मधु शुक्ला, सतना , मध्यप्रदेश .