(1) ” त “, तरुन्नुम में गाए चले जीवन
और रहे सदा तन मन प्रसन्न !
जब छा जाए दसों दिशाएं मकरंद……,
तब समझो आया झूम के यौवन !!
(2) ” रु “, रुत हसीन तरुणाई की छायी
और खिली प्रकृति हरओर मुस्कुरायी !
अब छम-छम झूमें चले नियति….,
और जीवन में बहारें खिल-खिल आयी !!
(3) ” णा/ना “, नाचे गाए हर्षाए जीवन
जब छा जाए है यहां तरुणाई !
घर आँगन का कानन उपवन…..,
आयी कलियाँ खिल-खिल मुस्काई !!
(4) ” ई “, ईश्वर की है बड़ी कृपा निराली
कि, उसने दिखलायी तरुणाई !
अब छायी चहुँओर है खुशहाली…..,
और रिमझिम-रिमझिम बरखा आई !!
(5) ” तरुणाई “, तरुणाई लाए जीवन में खुशियाँ
और चले जीवन यहां मुस्कुराए !
महक उठी है मन की बगिया……,
और जीवन गाए यहां खिलखिलाए !!
-सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान