अब कहाँ गुलजार सी है जिंदगी,
एक नाजुक तार सी है जिंदगी।
दूर रहकर सब सहे तेरे सितम,
बोझ लगती खार सी है जिंदगी।
हो गये हम दूर साहिल से भले,
अब नदी के धार सी है जिंदगी।
हाय कैसे अब जिये बिन यार के,
गम सहे बन भार सी है जिंदगी।
दर्द तेरा आज भी तड़फा रहा,
बन रही किरदार सी है जिंदगी।
– रीता गुलाटी ऋतंभरा, चंडीगढ़