आग सी तीखी नहीं मीठी जलन है जिंदगी,
आब सी मीठी नहीं तीखी तपन है जिंदगी ।
आँसुओं को तेल बाती सांस को ही मानिए ,
राग दीपक गा रही ऐसा भजन है जिंदगी ।
मरघटों के देश से लायी चुराकर चार दिन ,
मौत तक जाना जरूरी वो लगन है जिंदगी ।
बादलों की छांव में हम बेख़बर सोते रहे ,
आंधियों की गोद में बैठा पतन है जिंदगी ।
चाहतो की लाश को ढोते रहे ढोते रहे ,
थक गए तो ओढ़कर सोना कफ़न है जिंदगी ।
रास आये या न आये साफ वादा है नहीं ,
वासना मय भोग का ऐसा वतन है जिंदगी ।
क्या कभी मलबा उठाना सोचता है आदमी ,
पेट ख़ातिर सोच का सीधा दमन है जिंदगी ।
जिंदगी वरदान भी है जिंदगी अभिशाप भी ,
योग का सहयोग हो तो फिर अमन है जिंदगी ।
फूल पौधे फल बनाकर जन्म देते बीज को ,
चार चरणों में बटा ऐसा चमन है जिंदगी ।
कौन जाने कब कहाँ यह प्राण की गाड़ी रुके ,
लक्ष्य इसका मौत “हलधर” वो चलन है जिंदगी ।
– जसवीर सिंह हलधर, देहरादून