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ग़ज़ल हिंदी – जसवीर सिंह हलधर

आग सी तीखी नहीं मीठी जलन है जिंदगी,

आब सी मीठी नहीं तीखी तपन है जिंदगी ।

 

आँसुओं को तेल बाती सांस को ही मानिए ,

राग दीपक गा रही ऐसा भजन है जिंदगी ।

 

मरघटों के देश से लायी चुराकर चार दिन ,

मौत तक जाना जरूरी वो लगन है जिंदगी ।

 

बादलों की छांव में हम बेख़बर सोते रहे ,

आंधियों की गोद में बैठा पतन है जिंदगी ।

 

चाहतो की लाश को ढोते रहे ढोते रहे ,

थक गए तो ओढ़कर सोना कफ़न है जिंदगी ।

 

रास आये या न आये साफ वादा है नहीं ,

वासना मय भोग का ऐसा वतन है जिंदगी ।

 

क्या कभी मलबा उठाना सोचता है आदमी ,

पेट ख़ातिर सोच का सीधा दमन है जिंदगी ।

 

जिंदगी वरदान भी है जिंदगी अभिशाप भी ,

योग का सहयोग हो तो फिर अमन है जिंदगी ।

 

फूल पौधे फल बनाकर जन्म देते बीज को ,

चार चरणों में बटा ऐसा चमन है जिंदगी ।

 

कौन जाने कब कहाँ यह प्राण की गाड़ी रुके ,

लक्ष्य इसका मौत “हलधर” वो चलन है जिंदगी ।

– जसवीर सिंह हलधर, देहरादून

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