मनोरंजन

ग़ज़ल – झरना माथुर

जेठ की जब सियासत बड़ी,

सूर्य की भी अदावत बड़ी।

 

ये धारा प्यासी होने लगी,

बन शजर में बगावत बड़ी।

 

जब हवा गर्म होने लगी,

अब फिज़ा में मिलावट बड़ी।

 

कैद घर में सभी हो गए,

अब घरों में रफाकत बड़ी।

 

रेत “झरना” भरी जिस्त में.

जब बशर से हिमाकत बड़ी।

झरना माथुर, देहरादून, उत्तरखंड

Related posts

ग़ज़ल (हिंदी) – जसवीर सिंह हलधर

newsadmin

मेरी कलम से – डा० क्षमा कौशिक

newsadmin

लावणी छंद – मधु शुक्ला

newsadmin

Leave a Comment