मनोरंजन

ग़ज़ल – झरना माथुर

वो न आये  अश्क़ बस बहते रहे,

दर्दे-दिल चुपचाप हम सहते रहे।

 

खुद को समझाने कि ख़ातिर ये किया,

लौट  के  आएगा  वो  कहते रहे।

 

आयतों की तरह उसको रट लिया,

नाम उसका विर्द बस करते रहे।

 

क्या पता क़िस्मत में वो है या नहीं,

जिसकी ख़ातिर रात दिन मरते रहे।

 

जाने कैसी आग थी यादों की वो,

ज़ेहनो दिल जिस आग में जलते रहे।

 

अब ये “झरना” उम्र भर की है ख़लिश,

वो गया बस हाथ हम मलते रहे।

– झरना माथुर, देहरादून, उत्तराखंड

विर्द- ख्याति

वो न आये  अश्क़ बस बहते रहे,

दर्दे-दिल चुपचाप हम सहते रहे।

 

खुद को समझाने कि ख़ातिर ये किया,

लौट  के  आएगा  वो  कहते रहे।

 

आयतों की तरह उसको रट लिया,

नाम उसका विर्द बस करते रहे।

 

क्या पता क़िस्मत में वो है या नहीं,

जिसकी ख़ातिर रात दिन मरते रहे।

 

जाने कैसी आग थी यादों की वो,

ज़ेहनो दिल जिस आग में जलते रहे।

 

अब ये “झरना” उम्र भर की है ख़लिश,

वो गया बस हाथ हम मलते रहे।

– झरना माथुर, देहरादून, उत्तराखंड

विर्द- ख्याति

Related posts

मासूम बचपन की – राधा शैलेन्द्र

newsadmin

पत्रकार से दुर्व्यवहार मामले में कोर्ट ने सलमान खान को भेजा समन

admin

77ਵੇਂ ਆਜਾਦੀ ਦਿਵਸ ਮੌਕੇ ਲੇਖਿਕਾ ਡਾ. ਫ਼ਲਕ ਸਨਮਾਨਤ

newsadmin

Leave a Comment