मनोरंजन

पूर्णिका – श्याम कुंवर भारती

मानो तो देव नही तो पत्थर गर कहूं तुम्हे भावी घरवाली तो हर्ज क्या है।

तुम्हारी छोटी बहन को कहूं गर बेटी जो बनेगी मेरी साली तो हर्ज क्या है।

 

तुम्हारे पापा मेरे पिता और मम्मी मेरी माता तेरे सारे रिश्ते मेरे भी अपने है।

तुम्हारी सभी सहेलियों को कहूं गर मैं मेरे यार बड़ी दिलवाली तो हर्ज क्या है।

 

लगन का महीना है चलो हम दोनो अपना भी लग्न मंडप को सज़ा ले।

बारात लेकर आऊं द्वार भरूं तेरी मांग में सिंदूर की लाली तो हर्ज क्या है।

 

बैंड बाजा बजेगा डांस डीजे पर होगा दोस्तो संग सहेलियां तेरी भी नाचेंगी।

विवाह में तेरे मेरे घर वाले और बाराती खायेंगे भर भर थाली तो हर्ज क्या है।

 

बन के दुल्हन तुम सजोगी लक्ष्मी की मूरत तुम खूब लगोगी बड़ी शर्माओगी।

नाक में नथिया माथे पे बिंदिया गले में हार सोना कान बाली तो हर्ज क्या है।

 

जैसे मैने तुम्हे अपनो सहित अपना माना तुम मेरे रिश्तों को भी मान लेना।

तेरे पहले कदम से घर मेरे आ जाए हर तरफ खुशियाली तो हर्ज क्या है।

– श्याम कुंवर भारती, बोकारो झारखंड

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