होकर हम सभी स्वतंत्र जी रहे परतंत्र है।
आज हम आजाद है पर हो रहे विदेशी भाषा,
और विदेशी सभ्यता में लुप्त है ।।
भूल बैठे हम अपनी संस्कृति और मर्यादा।
कर रहे है हम खुद को और सनातन को कमजोर है।।
हिंदुस्तान में पाश्चात्य शैली चढ़ रही परवान है।
अब न रहा हम लोगो का आपस सम्मान है।।
जहा मतलब है स्वार्थ है बही हो रहा मान है।
भूल बैठे है हम खुद को ही और
कर रहे दूसरो की पहचान है ।।
अब न अपने बचे और ना अपनापन कर रहे,
खुद को महिमा का बखान है।
हो रही हिंदुस्तानियों की हिंदी भाषा और हिंदू संस्कृति से दूरी।।
हम सब ने यहां पाश्चत्य शैली की चादर ओढ़ ली है पूरी।।
यही सब बातें बड़ा रही हिंदुओं को सनातन से दूरी।।
शायद ये हो रहा हिंदुस्तान से षड्यंत्र है।
होकर हम स्वतंत्र भी जी रहे परतंत्र है।।
– राजेश कुमार झा, बीना, मध्य प्रदेश