(1)”शाम “, शाम होते ही,
घर की याद सताती है !
रहूं चाहें बाहर कहीं भी……,
घर की दरो दीवार पुकारती है !!
(2)”होती “, होती है घर की
हरेक बात निराली !
घर की आब-ओ-हवा में …..,
तैरे है सदा ख़ुशहाली !!
(3)”है “, है चाहत यही मेरी
कि, रहूं सदा घर में अपने !
जाऊं ना छोड़ कहीं…..,
घर परिवार को मैं अपने !!
(4)” तो “, तोबा कर ली है
जाऊंगा ना छोडके घरबार !
अपनी माट्टी की ….,
सुन ली है करुण पुकार !!
(5)”घर “, घर तो घर ही होता
मिले चाहें बाहर रुतवा !
घर की रोटी में ही….,
होता है स्वाद बढ़िया !!
(6)”शाम होती है तो,
घर की चाहत बढ़ आती !
दूर निकल कर ही.. ,
अपनों की याद आती !!
(7)”मंज़िलें हों कहीं भी “,
पर, जड़ से नाता ना तोड़ें !
हम रहें चाहें कहीं भी….,
पर, अपनों को कभी ना भूलें !!
-सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान