चाय पकोड़े और साथ हम, बैठें तो मन हर्षाये,
छोड़ किचन को पास हमारे,रहो तभी मन सुख पाये।
हम बाहर तुम घर में हरदम, व्यस्त रहो यह ठीक नहीं,
संवादों की वर्षा हो तो, मनवा कोयल बन जाये।
कर्तव्यों से प्रीति रखें हम, सदन हेतु आवश्यक यह,
नैन हंस जब आसपास हों, तब ही जीवन मुस्काये।
चाय पकोड़ों में हम तुम का, होना एक बहाना है,
तेरी संगत के सौरभ में, बसने को मन ललचाये।
— मधु शुक्ला, सतना , मध्यप्रदेश