कटता रहा उम्र का सफर तन्हा,
भीड़ में होती रही बसर तन्हा।
उनसे ही वाबस्ता रहा ता-उम्र,
जिनकी मिली हर खबर तन्हा।
कभी तवज्जो न मिली मुझको,
मुहब्बत रही इस कदर तन्हा।
हर वक़्त रहे आशना बे-खबर से,
दूर तलक देखा तो नज़र तन्हा।
रात के सन्नाटे में झिंगुर चीखें,
रात कैसे करे कोई गुजर तन्हा।
हो गए आशना जब बे-आशना,
अब निराश जाए किधर तन्हा।
– विनोद निराश , देहरादून