हमेशा प्यार बसता हो, नही गम का समन्दर हो,
मुहब्बत संग चाहत हो नही अब यार महवर हो।
बनो दुल्हन पिया की तुम, निभाना साथ दिलबर का,
खुशी से अब जियो तुम भी बड़ा प्यारा मुकद्दर हो।
सजा लो आज तुम खुद को,लगा लो तुम महावर भी,
सजें आँचल सितारो से, खुशी से अब भरा घर हो।
बनो प्यारी सजन की,चाहते हैं तुम्हें भी वो,
निछावर प्यार तुम करना वही तेरे ही रहबर हो।
सदा पहनो बहारो के ही गहने जिंदगी मे *ऋतु,
उठे आवाज कोई भी सदा वो घर के अंदर हो।
– ऋतु गुलाटी ऋतंभरा, मोहाली , पंजाब